Tuesday, April 6, 2010

साथ

क्यूँ यूँ खफा है ज़िन्दगी,
चंद लम्हों का ही तो साथ है,
क्या रूठना ओर मानना,
कुछ पल की ही तो बात है,
सफ़र हंसी हो या गम से भरा,
अब यह अपने ही तो हाथ है,
क्यूँ शिकवा शिकायत करे,
क्या जंग से होना प्राप्त है,
क्या हिसाब मुस्कराहट,
और आंसुओ  का रखना
चंद लम्हों का तो साथ है


जीत-हार,सुख-दुःख,
पाना-खोना,मिलना-बिछड़ना,
इन सबका ना कोई सार है,
हर लम्हे में जीवन का पान कर लूं,
वरना जाने क्या उस पार है,
कल के लिए क्यूँ व्यथित हो,
जब आज में ही जीवन का सार है,
क्यूँ खफा है तु ज़िन्दगी,
चंद लम्हों का तो  साथ है

किसका घमंड कैसा अहम,
कैसा पुण्य क्या धरम,
व्यर्थ की विधाए है,
व्यर्थ  की ये बात है,
प्रेम की वाणी बोलो ,
प्रेम ही हर ज़ख्म का इलाज है,
दूजो का दर्द देख,
अश्रुधरा से जो भूमि भीगी,
वही सबसे ऊँचा मंदिर,
सबसे बड़ी मजार है,
क्यूँ खफा है ज़िन्दगी,
चंद लम्हों का ही तो साथ है|

1 comment:

  1. mast likha hai yar rajpal...a good one from u..mujhe rhyming wali poems pasand hain :P

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