Sunday, March 13, 2011

एक तोला सो़ना

कहा माँ ने एक दिन  
थोडा सोना मोल लाना है
चाहे रुखी खा ले पर 
बेटी का ब्याह रचाना है
विदा करना उसे उसके घर को
मुझे अपना क़र्ज़ चुकाना है
है  दूल्हा अभी नजरो में
सम्मानित उसका घराना है
बस एक तोला सोना मोल लाना है|

सद्गुणों से समृद्ध है लाडली
चरित्र पावन गंगा सा है 
खुशियाँ  उसके कदमो की 
लगता  हम जोली है
क्रोध ,इर्ष्या ,लालच इनको
तो उसने ना पहचाना है
खुद में वह एक गुण-आभूषण 
फिर भी जाने क्यूँ जरूरी
 वो एक तोला सोना है

1 comment:

  1. खुद में वह एक गुण-आभूषण
    फिर भी जाने क्यूँ जरूरी
    वो एक तोला सोना है

    अखिलेश यह प्रश्न हमारी पूरी सामाजिक व्यवस्था के लिए है..... बहुत सटीक और संवेदनशील भाव उकेरे हैं..... बधाई

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