Friday, April 12, 2013

पीड़ा भारत भूमि की

फिर आज वही कशमकश,
दिनकर का बीज है विवश,
लोक लाज में इस समाज से,
त्याग रही कर्ण को फिर कुंती,
है ललाट पर धरा का भाग्य लिखा,
इतिहास गढ़ने की बाजुओ में क्षमता,
मगर नहीं किसी को सत्य ज्ञात है,
मुंद आँखे गंतव्य की और बढ़ रहे,
महज भय से भाग्य बदलना है,
फिर सुयोधन को दुर्योधन बना,
एक अर्जुन जनने का स्वप्न लिए,
नव महाभारत की नीव रहे है,
पीड़ा ये नहीं की सियार शासक है,
पीड़ा है ये की सिंह नपुंसक है|
हर आशियाने में  ख़ामोशी है,
आखिर कौन असल में दोषी है ,
क्यों भीष्म आज भी फिर ,
जिव्हा की खातिर हो विवश ,
जग को जलता देख रहे है ,
जो वासुदेव जग संरक्षक है ,
क्यूँ न देवव्रत को गीता ज्ञान दे ,
महाभारत को रोक रहे है ,
क्यूँ गांधारी अब भी मजबूर है,
क्यूँ शकुनी को कर कुंठित  ,
चोसर का खेल रचा जा रहा है,
शायद है भारत-भूमि तू शापित
 तभी मिलते सदैव तुझे धृतराष्ट्र है,
पीड़ा ये नहीं की सियार शासक है,
पीड़ा है ये की सिंह नपुंसक है||